नौकरी कोई भी हो, आख़िर नौकरी ही है | मन घर पर टँगा हुआ होगा |
यह है „मैला आँचल”, एक आंचलिक उपन्यास |
(első mondat)
सचमुच विद्या की महिमा बड़ी है |
वह हँसकर कहा करता, "दिल नाम की कोई चीज़ आदमी की शरीर में है, हमें नहीं मालूम | पता नहीं आदमी „लंग्स ” को दिल कहता है या „हार्ट” को | जो भी हो, „हार्ट ” "लंग्स" या „लीवर” का प्रेम से कोई संबंद नहीं है |"
बालदेव को रामनगर मेला के दुर्गा मंदिर की तरह गंध लगती है – मनोहर सुगंध! पवित्र गंध! औरतों की देह से तो हल्दी, लहसुन, प्याज़ और घाम की गंध निकलती है |
अंग-भंग आदमी सारी दुनिया को अंग-भंग देखता है |
ग़रीब और बेज़मीन लोगों की हालत भी ख्महार के बैलों जैसी है | मुंह में जाली का जाब |
…जो, मेरा कोई नहीं ! लछमी सोचती है, उसका दिल इतना नरम क्यों है ? क्यों वह डाक्टर को देखकर पिघल गई ? यह अच्छी बात नहीं | … सतगुरु मुझे बल दो |
रोने – कराहने के लिए बाकी ग्यारह महीने तो हैं ही, फागुन-भर तो हँस लो, गा लो |